न मुझमें रंग, न मुझमें रूप,
न दीखे मेरा कहीं शरीर।
किन्तु मेरे प्राणों पर हाय,
टूटते हो तुम आलमगीर!
मधुरिमे! तू कितनी लाचार,
अभागा मैं वीणा का तार।
विवश मैं तो वीणा का तार।
माखनलाल चतुर्वेदी #काव्य_कृति #लेखनी
Looking at this Sculpture from Rani Ki Vav these lines came to mind
There could be many thoughts?
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