Wednesday, October 09, 2024

#समर्पण , माखनलाल चतुर्वेदी , काव्य

#समर्पण 
न मुझमें रंग, न मुझमें रूप, 
न दीखे मेरा कहीं शरीर। 
किन्तु मेरे प्राणों पर हाय, 
टूटते हो तुम आलमगीर! 
मधुरिमे! तू कितनी लाचार, 
अभागा मैं वीणा का तार। 
विवश मैं तो वीणा का तार। 
माखनलाल चतुर्वेदी #काव्य_कृति   #लेखनी 
Looking at this Sculpture from Rani Ki Vav these lines came to mind
There could be many thoughts?